भूख

सकीना चलती चली जा रही थी कितने रास्ते कट गये इसका भान ही नहीं रहा,जब एक पत्थर से ठोकर लगी और अंगूठा लहूलुहान हो गया तब रुकना ही पडा़। थोड़ी देर वहीं बैठकर अंगूठे को सहलाया तब एहसास हुआ कि वह जीवित है । न जाने किस घड़ी में उसकी शादी  ख़ुर्शीद के साथ हुई थी । तबसे एक पल का भी चैन नहीं था उसके जीवन में।  पेशे से दर्ज़ी और दो बच्चों का बाप था ख़ुर्शीद। ग़रीबी जो न कराए वह कम है। ख़ुर्शीद की बड़ी बेटी नगीना उसी के उम्र की थी। ख़ुर्शीद की पहली बीबी मर चुकी थी इसलिए सकीना के चाचा-चाची ने उसकी शादी ख़ुर्शीद से करा दी।  ख़ुर्शीद के पास पढ़ाई-लिखाई की कोई दौलत नहीं थी पर, दर्जी के पेशे में वह माहिर था। कपड़े बहुत बढ़ियां सिलता था। और,उसी से  किसी तरह ख़ूद को और परिवार को सम्भाल रहा था।  लेकिन अल्लाह से क्या कहे जिन्होंने उसपर यह गाज़ गिरायी थी। ख़ुर्शीद जब बेटी नगीना का रोका करके आया तो नजाने कैसे कोरोनावायरस की चपेट में आ गया।जब बुख़ार बहुत तेज़ हो गया तो सकीना उसे डॉक्टर के पास ले गई पर ख़ुर्शीद बच नहीं पाया।इधर  B.m.c. वालों ने उसे, नगीना को और ख़ुर्शीद के बेटे को घर में ही क़ैद कर दिया।एक रात सकीना की आँखों के सामने ख़ुर्शीद के बेटे आफ़ताब ने दम तोड़ दिया।  B.M.C.वाले आफ़ताब को ले गये। सकीना समझ गई कि अगर वह इस घर में रही तो वह भी इस बीमारी से मर जायगी, महज पच्चीस साल की उम्र में वह मर जायेगी। वह अजीब कशमकश में थी। नगीना के लिए वह क्या करे। दूसरे दिन B.M.C. वाले उन दोनों को अस्पताल ले गये जाँच करने के लिए। नगीना को कोरोनावायरस ने जकड़ लिया था लेकिन जब उसकी जाँच की गई तो वह निगेटिव निकली डॉक्टर ने उसे घर में ही चौदह दिन रहने के लिए कहा। कुछ दिनों बाद अस्पताल से ख़बर आई कि नगीना भी नहीं रहीअब वह घर में किसके भरोसे रहती। मुहल्ले वालों ने उसके घर को भुतहा घर घोषित कर दिया था।

वह घर से  निकल गई, तबसे वह चल ही रही थी।इस अंगूठे की चोट ने उसे भूख का एहसास कराया सामने अस्पताल देखकर  वह वहां अपना ख़ून बेचने चल दी।  उन्हीं पैसों से भूख मिटाने की सोंच रही थी।ख़ून बनेगा तब तो बेच पायेगी।और इस भूख को मिटाने का यही ज़रिया उसके पास था।सब ख़त्म हो गया था,सिवाय इस भूख के।

  • मृदुला मिश्रा

मुम्बई

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